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Topic:- DU_J18_BELED_Topic01
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निम्न में से कौन सा पद जीवन के अंत की ओर संकेत नहीं करता है ?
प्रश्न 1-5 निम्न गद्यांश पर आधारित हैं :
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निम्नलिखित गद्यान्श को पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उचित विकल्प चुनेंः
रानी, मैं रमेश, दरअसल समझ नहीं पा रहा हूँ, किस प्रकार तुम्हें यह पत्र लिखूँ। किस मुँह से तुम्हें यह समाचार सुनाऊँ। फिर भी रानी, तुम इस चोट को धैर्यपूर्वक सह लेना। जीवन में दुःख की घड़ियाँ भी आती हैं, और उन्हें साहसपूर्वक सहने में ही जीवन की महानता है। यह संसार नश्वर है। जो बना है वह एक- न-एक दिन मिटेगा ही, शायद इस तथ्य को सामने रखकर हमारे यहाँ कहा है कि संसार की माया से मोह रखना दुःख का मूल है। तुम्हारी इतनी हिदायतों के और अपनी सारी सतर्कता के बावजूद मैं उसे नहीं बचा सका, इसे अपने दुर्भाग्य के अतिरिक्त और क्या कहूँ। यह सब कुछ मेरे ही हाथों होना था ...आँसू-भरी आँखों के कारण शब्दों का रूप अस्पष्ट से अस्पष्टतर होता जा रहा था और मेरे हाथ काँप रहे थे। अपने जीवन में यह पहला अवसर था, जब मैं इस प्रकार किसी की मृत्यु का समाचार पढ़ रही थी। मेरी आँखें शब्दों को पार करती हुई जल्दी-जल्दी पत्र के अंतिम हिस्से पर जा पड़ी धैर्य रखना मेरी रानी, जो कुछ हुआ उसे सहने की और भूलने की कोशिश करना। कल चार बजे तुम्हारे पचास रुपए वाले सेट के दोनों प्याले मेरे हाथ से गिरकर टूट गए। अन्नू अच्छी है। शीघ्र ही हम लोग रवाना होने वाले हैं।
सयानी बुआ, मन्नू भण्डारी
निम्न में से कौन सा पद जीवन के अंत की ओर संकेत नहीं करता है ?
[Question ID = 17742]
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Correct Answer :-
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निम्नलिखित गद्यान्श को पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उचित विकल्प चुनें:
रानी, मैं रमेश, दरअसल समझ नहीं पा रहा हूँ, किस प्रकार तुम्हें यह पत्र लिखूँ। किस मुँह से तुम्हें यह समाचार सुनाऊँ। फिर भी रानी, तुम इस चोट को धैर्यपूर्वक सह लेना। जीवन में दुःख की घड़ियाँ भी आती हैं, और उन्हें साहसपूर्वक सहने में ही जीवन की महानता है। यह संसार नश्वर है। जो बना है वह एक- न-एक दिन मिटेगा ही, शायद इस तथ्य को सामने रखकर हमारे यहाँ कहा है कि संसार की माया से मोह रखना दुःख का मूल है। तुम्हारी इतनी हिदायतों के और अपनी सारी सतर्कता के बावजूद मैं उसे नहीं बचा सका, इसे अपने दुर्भाग्य के अतिरिक्त और क्या कहूँ। यह सब कुछ मेरे ही हाथों होना था...आँसू-भरी आँखों के कारण शब्दों का रूप अस्पष्ट से अस्पष्टतर होता जा रहा था और मेरे हाथ काँप रहे थे। अपने जीवन में यह पहला अवसर था, जब मैं इस प्रकार किसी की मृत्यु का समाचार पढ़ रही थी। मेरी आँखें शब्दों को पार करती हुई जल्दी-जल्दी पत्र के अंतिम हिस्से पर जा पड़ी धैर्य रखना मेरी रानी, जो कुछ हुआ उसे सहने की और भूलने की कोशिश करना। कल चार बजे तुम्हारे पचास रुपए वाले सेट के दोनों प्याले मेरे हाथ से गिरकर टूट गए। अन्नू अच्छी है। शीघ्र ही हम लोग रवाना होने वाले हैं।
"किस मुँह से तुम्हें यह समाचार सुनाऊँ" अनुच्छेद के आधार पर बताएं कि रेखांकित पद का भाव क्या नहीं हो सकता है?
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[Question ID = 17743]
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सयानी बुआ, मन्नू भण्डारी
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निम्नलिखित गद्यान्श को पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उचित विकल्प चुनें:
रानी, मैं रमेश, दरअसल समझ नहीं पा रहा हूँ, किस प्रकार तुम्हें यह पत्र लिखूँ। किस मुँह से तुम्हें यह समाचार सुनाऊँ। फिर भी रानी, तुम इस चोट को धैर्यपूर्वक सह लेना। जीवन में दुःख की घड़ियाँ भी आती हैं, और उन्हें साहसपूर्वक सहने में ही जीवन की महानता है। यह संसार नश्वर है। जो बना है वह एक- न-एक दिन मिटेगा ही, शायद इस तथ्य को सामने रखकर हमारे यहाँ कहा है कि संसार की माया से मोह रखना दुःख का मूल है। तुम्हारी इतनी हिदायतों के और अपनी सारी सतर्कता के बावजूद मैं उसे नहीं बचा सका, इसे अपने दुर्भाग्य के अतिरिक्त और क्या कहूँ। यह सब कुछ मेरे ही हाथों होना था ...आँसू-भरी आँखों के कारण शब्दों का रूप अस्पष्ट से अस्पष्टतर होता जा रहा था और मेरे हाथ काँप रहे थे। अपने जीवन में यह पहला अवसर था, जब मैं इस प्रकार किसी की मृत्यु का समाचार पढ़ रही थी। मेरी आँखें शब्दों को पार करती हुई जल्दी-जल्दी पत्र के अंतिम हिस्से पर जा पड़ी धैर्य रखना मेरी रानी, जो कुछ हुआ उसे सहने की और भूलने की कोशिश करना। कल चार बजे तुम्हारे पचास रुपए वाले सेट के दोनों प्याले मेरे हाथ से गिरकर टूट गए। अन्नू अच्छी है। शीघ्र ही हम लोग रवाना होने वाले हैं।
सयानी बुआ, मन्नू भण्डारी
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"इसे अपने दुर्भाग्य के अतिरिक्त और क्या कहूँ"... अनुच्छेद के आधार पर बताएं कि इस पद में रमेश का दुर्भाग्य इनमें से क्या नहीं है?
[Question ID = 17752]
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Correct Answer :-
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निम्नलिखित गद्यान्श को पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उचित विकल्प चुनें:
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रानी, मैं रमेश, दरअसल समझ नहीं पा रहा हूँ, किस प्रकार तुम्हें यह पत्र लिखूँ। किस मुँह से तुम्हें यह समाचार सुनाऊँ। फिर भी रानी, तुम इस चोट को धैर्यपूर्वक सह लेना। जीवन में दुःख की घड़ियाँ भी आती हैं, और उन्हें साहसपूर्वक सहने में ही जीवन की महानता है। यह संसार नश्वर है। जो बना है वह एक- न-एक दिन मिटेगा ही, शायद इस तथ्य को सामने रखकर हमारे यहाँ कहा है कि संसार की माया से मोह रखना दुःख का मूल है। तुम्हारी इतनी हिदायतों के और अपनी सारी सतर्कता के बावजूद मैं उसे नहीं बचा सका, इसे अपने दुर्भाग्य के अतिरिक्त और क्या कहूँ। यह सब कुछ मेरे ही हाथों होना था ... आँसू-भरी आँखों के कारण शब्दों का रूप अस्पष्ट से अस्पष्टतर होता जा रहा था और मेरे हाथ काँप रहे थे। अपने जीवन में यह पहला अवसर था, जब मैं इस प्रकार किसी की मृत्यु का समाचार पढ़ रही थी। मेरी आँखें शब्दों को पार करती हुई जल्दी-जल्दी पत्र के अंतिम हिस्से पर जा पड़ी धैर्य रखना मेरी रानी, जो कुछ हुआ उसे सहने की और भूलने की कोशिश करना। कल चार बजे तुम्हारे पचास रुपए वाले सेट के दोनों प्याले मेरे हाथ से गिरकर टूट गए। अन्नू अच्छी है। शीघ्र ही हम लोग रवाना होने वाले हैं।
"शब्दों का रूप अस्पष्ट से अस्पष्टतर होता जा रहा था" का अर्थ होगा-
[Question ID = 17749]
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Correct Answer :-
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निम्नलिखित गद्यान्श को पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उचित विकल्प चुनेंः
रानी, मैं रमेश, दरअसल समझ नहीं पा रहा हूँ, किस प्रकार तुम्हें यह पत्र लिखूँ। किस मुँह से तुम्हें यह समाचार सुनाऊँ। फिर भी रानी, तुम इस चोट को धैर्यपूर्वक सह लेना। जीवन में दुःख की घड़ियाँ भी आती हैं, और उन्हें साहसपूर्वक सहने में ही जीवन की महानता है। यह संसार नश्वर है। जो बना है वह एक- न-एक दिन मिटेगा ही, शायद इस तथ्य को सामने रखकर हमारे यहाँ कहा है कि संसार की माया से मोह रखना दुःख का मूल है। तुम्हारी इतनी हिदायतों के और अपनी सारी सतर्कता के बावजूद मैं उसे नहीं बचा सका, इसे अपने दुर्भाग्य के अतिरिक्त और क्या कहूँ। यह सब कुछ मेरे ही हाथों होना था ...आँसू-भरी आँखों के कारण शब्दों का रूप अस्पष्ट से अस्पष्टतर होता जा रहा था और मेरे हाथ काँप रहे थे। अपने जीवन में यह पहला अवसर था, जब मैं इस प्रकार किसी की मृत्यु का समाचार पढ़ रही थी। मेरी आँखें शब्दों को पार करती हुई जल्दी-जल्दी पत्र के अंतिम हिस्से पर जा पड़ी धैर्य रखना मेरी रानी, जो कुछ हुआ उसे सहने की और भूलने की कोशिश करना। कल चार बजे तुम्हारे पचास रुपए वाले सेट के दोनों प्याले मेरे हाथ से गिरकर टूट गए। अन्नू अच्छी है। शीघ्र ही हम लोग रवाना होने वाले हैं।
सयानी बुआ, मन्नू भण्डारी
'हिदायों व सतर्कता' शब्दों के अर्थ का सही जोड़ा क्रमशः होगा-
[Question ID = 17746]
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Correct Answer :-
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Topic:- DU_J18_BELED_Topic02
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गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें।
प्रियतम को एक वर्ष की सज़ा हो गयी। और ......(6) केवल इतना था, कि तीन दिन पहले जेठ की तपती (7) ...... में उन्होंने राष्ट्र के कई सेवकों का शर्बत-पान से सत्कार किया था। मैं उस वक्त अदालत में खड़ी थी। कमरे के बाहर सारे नगर की राजनैतिक चेतना किसी बंदी पशु की भांति खड़ी चीत्कार कर रही थी। मेरे प्राणधन हथकड़ियों से ..(8) हुए लाये गए। चारों ओर सन्नाटा छा गया। मेरे भीतर हाहाकार मचा हुआ था, मानो ......(9) निकले जा रहे हों। आवेश की लहरें-सी उठ उठकर समस्त शरीर को ......(10) किये देती थीं। ओह! इतना गर्व मुझे कभी नहीं हुआ था।
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'अनुभव' प्रेमचंद
अनुच्छेद के आधार पर दिए गए विकल्पों में से कौन सा शब्द नहीं आएगा। (8)
[Question ID = 17776]
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Correct Answer :-
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गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें।
प्रियतम को एक वर्ष की सज़ा हो गयी। और ......(6) केवल इतना था, कि तीन दिन पहले जेठ की तपती (7) ...... में उन्होंने राष्ट्र के कई सेवकों का शर्बत-पान से सत्कार किया था। मैं उस वक्त अदालत में खड़ी थी। कमरे के बाहर सारे नगर की राजनैतिक चेतना किसी बंदी पशु की भांति खड़ी चीत्कार कर रही थी। मेरे प्राणधन हथकड़ियों से...... (8) हुए लाये गए। चारों ओर सन्नाटा छा गया। मेरे भीतर हाहाकार मचा हुआ था, मानो...... (9) निकले जा रहे हों। आवेश की लहरें-सी उठ उठकर समस्त शरीर को ......(10) किये देती थीं। ओह! इतना गर्व मुझे कभी नहीं हुआ था।
'अनुभव' प्रेमचंद
अनुच्छेद के आधार पर दिए गए विकल्पों में से सबसे उचित विकल्प चुनें। (7)
[Question ID = 17775]
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Correct Answer :-
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गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें।
प्रियतम को एक वर्ष की सज़ा हो गयी। और ......(6) केवल इतना था, कि तीन दिन पहले जेठ की तपती (7) ...... में उन्होंने राष्ट्र के कई सेवकों का शर्बत-पान से सत्कार किया था। मैं उस वक्त अदालत में खड़ी थी। कमरे के बाहर सारे नगर की राजनैतिक चेतना किसी बंदी पशु की भांति खड़ी चीत्कार कर रही थी। मेरे प्राणधन हथकड़ियों से...... (8) हुए लाये गए। चारों ओर सन्नाटा छा गया। मेरे भीतर हाहाकार मचा हुआ था, मानो...... (9) निकले जा रहे हों। आवेश की लहरें-सी उठ उठकर समस्त शरीर को ......(10) किये देती थीं। ओह! इतना गर्व मुझे कभी नहीं हुआ था।
'अनुभव' प्रेमचंद
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अनुच्छेद के आधार पर दिए गए विकल्पों में से सबसे उचित विकल्प चुनें। (9)
[Question ID = 17777]
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Correct Answer :-
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गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें।
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प्रियतम को एक वर्ष की सज़ा हो गयी। और ......(6) केवल इतना था, कि तीन दिन पहले जेठ की तपती (7) ...... में उन्होंने राष्ट्र के कई सेवकों का शर्बत-पान से सत्कार किया था। मैं उस वक्त अदालत में खड़ी थी। कमरे के बाहर सारे नगर की राजनैतिक चेतना किसी बंदी पशु की भांति खड़ी चीत्कार कर रही थी। मेरे प्राणधन हथकड़ियों से...... (8) हुए लाये गए। चारों ओर सन्नाटा छा गया। मेरे भीतर हाहाकार मचा हुआ था, मानो...... (9) निकले जा रहे हों। आवेश की लहरें-सी उठ उठकर समस्त शरीर को ......(10) किये देती थीं। ओह! इतना गर्व मुझे कभी नहीं हुआ था।
'अनुभव' प्रेमचंद
अनुच्छेद के आधार पर दिए गए विकल्पों में से कौन सा शब्द नहीं आएगा? (10)
[Question ID = 17778]
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Correct Answer :-
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गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें।
प्रियतम को एक वर्ष की सज़ा हो गयी। और ......(6) केवल इतना था, कि तीन दिन पहले जेठ की तपती (7) ...... में उन्होंने राष्ट्र के कई सेवकों का शर्बत-पान से सत्कार किया था। मैं उस वक्त अदालत में खड़ी थी। कमरे के बाहर सारे नगर की राजनैतिक चेतना किसी बंदी पशु की भांति खड़ी चीत्कार कर रही थी। मेरे प्राणधन हथकड़ियों से...... (8) हुए लाये गए। चारों ओर सन्नाटा छा गया। मेरे भीतर हाहाकार मचा हुआ था, मानो ...... (9) निकले जा रहे हों। आवेश की लहरें-सी उठ उठकर समस्त शरीर को ......(10) किये देती थीं। ओह! इतना गर्व मुझे कभी नहीं हुआ था।
'अनुभव' प्रेमचंद
अनुच्छेद के आधार पर दिए गए विकल्पों में से सबसे उचित विकल्प चुनें। (6)
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[Question ID = 17774]
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Topic:- DU_J18_BELED_Topic03
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निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर विकल्पों में से सबसे उचित विकल्प चुनें।
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....सारा दिन हम एक निर्मोही कपटी के ध्यान में बैठी रहें, न किसी काम की रहें न किसी धाम की.... आँखें कभी रोते रोते पथरा जाएँ, कभी आसुओं की मार से दाब जाएँ... हममें न कोई उमंग रह जाए, न उछात, न दूजी भावना, मैं पूछती हूँ- क्या यह प्रेम है?, जिसके भुलावे में पड़कर नारी जाति स्वयं अपना नाश करने में पुरुष को आप मदद देती है? दूर कर नारी यह मोह! घूँघट के पट खोल पुरुष के अत्याचारों के खिलाफ संगठित होकर अपनी आवाज़ उठा। जिस दिन स्त्री जाति अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों का अंत करने के लिए निश्चयपूर्वक खड़ी हो जाएगी उसी दिन दुनिया से हर तरह के अत्याचार मिट जाएंगे।
बूंद और समुद्र- अमृतलाल नगर
"दूर कर नारी यह मोह!" इस पद में नारी से किस मोह से दूर रहने को नहीं कहा जा रहा है?
[Question ID = 17783]
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निम्नलिखित अनुच्छेद को पढकर विकल्पों में से सबसे उचित विकल्प चुनें।
....सारा दिन हम एक निर्मोही कपटी के ध्यान में बैठी रहें, न किसी काम की रहें न किसी धाम की.... आँखें कभी रोते रोते पथरा जाएँ, कभी आसुओं की मार से दाब जाएँ... हममें न कोई उमंग रह जाए, न उछात, न दूजी भावना, मैं पूछती हूँ- क्या यह प्रेम है?, जिसके भुलावे में पड़कर नारी जाति स्वयं अपना नाश करने में पुरुष को आप मदद देती है? दूर कर नारी यह मोह! घूँघट के पट खोल पुरुष के अत्याचारों के खिलाफ संगठित होकर अपनी आवाज़ उठा। जिस दिन त्री जाति अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों का अंत करने के लिए निश्चयपूर्वक खड़ी हो जाएगी उसी दिन दुनिया से हर तरह के अत्याचार मिट जाएंगे।
बूंद और समुद्र- अमृतलाल नगर
"सारा दिन हम एक निर्मोही ______ बैठी रहें." रिक्त स्थान पर विकल्पों में से कौन सा पद सही होगा ?
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[Question ID = 17781]
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Correct Answer :-
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निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर विकल्पों में से सबसे उचित विकल्प चुनें।
....सारा दिन हम एक निर्मोही कपटी के ध्यान में बैठी रहें, न किसी काम की रहें न किसी धाम की.... आँखें कभी रोते रोते पथरा जाएँ, कभी आसुओं की मार से दाब जाएँ.... हममें न कोई उमंग रह जाए, न उछात, न दूजी भावना, मैं पूछती हूँ- क्या यह प्रेम है?, जिसके भुलावे में पड़कर नारी जाति स्वयं अपना नाश करने में पुरुष को आप मदद देती है? दूर कर नारी यह मोह! घूँघट के पट खोल पुरुष के अत्याचारों के खिलाफ संगठित होकर अपनी आवाज़ उठा। जिस दिन स्त्री जाति अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों का अंत करने के लिए निश्चयपूर्वक खड़ी हो जाएगी उसी दिन दुनिया से हर तरह के अत्याचार मिट जाएंगे।
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बूंद और समुद्र - अमृतलाल नगर
"न किसी काम की रहें न किसी धाम की...." रेखांकित मुहावरे के स्थान पर विकल्पों में से कौन सा मुहावरा सही होगा?
[Question ID = 17782]
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निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर विकल्पों में से सबसे उचित विकल्प चुनें।
....सारा दिन हम एक निर्मोही कपटी के ध्यान में बैठी रहें, न किसी काम की रहें न किसी धाम की.... आँखें कभी रोते रोते पथरा जाएँ, कभी आसुओं की मार से दाब जाएँ.... हममें न कोई उमंग रह जाए, न उछात, न दूजी भावना, मैं पूछती हूँ- क्या यह प्रेम है?, जिसके भुलावे में पड़कर नारी जाति स्वयं अपना नाश करने में पुरुष को आप मदद देती है? दूर कर नारी यह मोह ! घूँघट के पट खोल पुरुष के अत्याचारों के खिलाफ संगठित होकर अपनी आवाज़ उठा। जिस दिन स्त्री जाति अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों का अंत करने के लिए निश्चयपूर्वक खड़ी हो जाएगी उसी दिन दुनिया से हर तरह के अत्याचार मिट जाएंगे।
बूंद और समुद्र - अमृतलाल नगर
"घूँघट के पट खोल पुरुष के अत्याचारों के खिलाफ संगठित होकर अपनी आवाज़ उठा" इस पद में लेखक नारी को क्या संदेश देना चाहता है ?
[Question ID = 17780]
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Correct Answer :-
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निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर विकल्पों में से सबसे उचित विकल्प चुनें।
....सारा दिन हम एक निर्मोही कपटी के ध्यान में बैठी रहें, न किसी काम की रहें न किसी धाम की..... आँखें कभी रोते रोते पथरा जाएँ, कभी आसुओं की मार से दाब जाएँ.... हममें न कोई उमंग रह जाए, न उछात, न दूजी भावना, मैं पूछती हूँ- क्या यह प्रेम है?, जिसके भुलावे में पड़कर नारी जाति स्वयं अपना नाश करने में पुरुष को आप मदद देती है? दूर कर नारी यह मोह! घूँघट के पट खोल पुरुष के अत्याचारों के खिलाफ संगठित होकर अपनी आवाज़ उठा। जिस दिन स्त्री जाति अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों का अंत करने के लिए निश्चयपूर्वक खड़ी हो जाएगी उसी दिन दुनिया से हर तरह के अत्याचार मिट जाएंगे।
बूंद और समुद्र - अमृतलाल नगर
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"अत्याचारों का अंत करने के लिए निश्चयपूर्वक खड़ी हो जाएगी" रेखांकित शब्द के स्थान पर कौन सा विकल्प नहीं आ सकता?
[Question ID = 17784]
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Topic:- DU_J18_BELED_Topic04
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निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर विकल्पों में से सबसे उचित विकल्प चुनें।
मैं - खट्टर काका, आप भूत नहीं मानते हैं?
ख - अजी, में 'भूत', 'भविष्य', 'वर्तमान' सभी मानता हूँ।
मैं - वह भूत नहीं।
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ख - तब कौन-सा भूत?
मैं - वह भूत जो आदमी पर चढ़ जाता है।
खट्टर काका एक क्षण सोचकर बोले- हाँ, वह भूत भी मानता हूँ। अभी भी हम लोगों के माथे पर वह भूत चढ़ा हुआ है।
मैंने कहा-खट्टर काका, आप व्यंग्य कर रहे हैं। परंतु पद्य-पुराण में भूतों का कितना वर्णन लिखा है?
खट्टर काका भंग में काली मिर्च मिलाते हुए बोले- वही भूत तुम्हारे सर से बोल रहा है। बड़े-बड़े पंडितों के सर पर ये भूत सवार रहता है। जहाँ कुछ पूछो कि 'ऐसा लिखा हुआ है'! उनसे कहो 'महाराज!
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